पॉलिटिक्स में क्रिमिनल सुप्रीम कोर्ट मजबूर | Neeraj Mishraa
पॉलिटिक्स में क्रिमिनल सुप्रीम कोर्ट मजबूर
26-Apr-2023

हाल में राहुल गाँधी को Defamation केस में 2 वर्ष की सजा हो जाने से उनकी लोकसभा सदस्यता जाती रही। रायपुर के गुप्ता जी के जैसे कुछ निपट मूर्खो और दैनिक भास्कर जैसे ज्ञानी अखबारों ने ये कहना शुरू कर दिया की राहुल गाँधी ने जिस Odinance को फाड़ा था अगर वो आज होता तो राहुल गाँधी बच जाते। इससे ज्यादा कम अक़्ली की बात नहीं हो सकती।

2013 में जिस Odinance को राहुल ने फाड़ा वो मनमोहन सिंह सरकार मुलायम सिंह जैसे नेताओ के दबाव में लायी थी। इस Odinance से सारे क्रिमिनल लोकसभा सदस्य और mla को गिरफ्तारी से प्रोटेक्शन मिल जाता और उनके खिलाफ इलेक्शन लड़ने की भी मनाही नहीं होती। राहुल गाँधी ने क्रिमिनल लाइजेशन ऑफ़ पॉलिटिक्स को रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया था। आज उसका उपयोग करके उन्हें सदस्यता से वंचित कर दिया गया है। लेकिन जब हम क्रिमिनल लाइजेशन ऑफ़ पॉलिटिक्स की बात करते है तो उसमे जघन्य अपराधों जैसे रेप ,हत्या और Extortion की बात होती है ना की Defamation जैसे मामूली अपराधों की।

आज 2556 विधायकों और सांसदों के खिलाफ 4500 से भी ज्यादा केसेस पेंडिग है। अतीक और मुख़्तार अंसारी भी जनप्रतिनिधि रह चुके है ये आपको याद दिलाने की जरुरत नहीं है।

2017 में आखिर सुप्रीम कोर्ट ने महसूस किया की अब तो क्रिमिनल पॉलिटिक्स की अति हो गई है तो उन्होंने MP -MLA स्पेशल कोर्ट की स्थापना करी। अब ये MP -MLA कोर्ट क्या है और इनकी कार्य पद्धति जनता का विश्वास जीत सकती है या नहीं।

1. MP -MLA कोर्ट उन राज्यों में है जहा 65 से अधिक विधायक और सांसद (पूर्व मिलाकर) के खिलाफ मामले चल रहे है।

2. इसके तहत दिल्ली , up ,बिहार ,बंगाल , mp ,महाराष्ट्र ,कर्नाटक,आंध्रप्रदेश, तेलांगाना,केरल और तमिलनाडु में कोर्ट स्थापित है।

3. इन MP -MLA कोर्ट को सेशन कोर्ट का दर्जा हासिल है।

4. ये स्पेशल कोर्ट MP -MLA के खिलाफ जो केस लगे है उनके निपटारे के लिए है। MP -MLA जो केस लगाएंगे उनके लिए नहीं है।

5. अब -तक इस कोर्ट्स की रफ़्तार बहुत धीमी ही रही है क्योकि प्रोसीजर तो वही CRPC और IPC के फॉलो करने है।

अब तक कुछ ही मामलो में MP -MLA कोर्ट्स ने कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लिए है। जैसे आजम खान को हेट स्पीच मामले में 3 वर्ष की सजा सुनाई गई और उनकी विधायकी रद्द हो गई। दूसरा राज बब्बर को 3 वर्ष की सजा सुनाई गई है। गुजरात में क्योकि MP -MLA कोर्ट नहीं है तो राहुल गाँधी का मामला अपील में सूरत सेशन कोर्ट में ही गया।

MP -MLA कोर्ट्स की सविधानिकता को मद्रास हाई कोर्ट ने 2021 में गलत ठहराया था। जो ऑब्जेक्शन उठाये गए थे उनमे प्रमुख है।

1. MP -MLA कोई ऐसा वर्ग नहीं है जिनके लिए विशेष न्यायालय बनाया जाए।

2. एक स्टेट में एक कोर्ट हर डिस्ट्रिक नहीं कवर कर सकता।

3. स्टेट गवर्मेंट का कंट्रोल खत्म नहीं होता। जिससे अपने पार्टी के MP -MLA को बचाने का सरकार प्रयास करती है।

तो क्या हम क्रिमिनल MP -MLA elect करने के लिए मजबूर है? ADR ने एक बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया था की सारे नेता अपने चुनाव घोषणा पत्र में अपने खिलाफ सारे केसेस की जानकारी उपलब्ध कराये। उसके बाद 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने ये कम्पलसरी कर दिया और साथ ही सब राजनितिक दलों के लिए ये बताना कम्पलसरी कर दिया की क्रिमनल को क्यों टिकिट दी गई।

राजनितिक दलों ने अभी तक इसे मजाक में ही लिया इसीलिए पिछली लोकसभा से इस बार 26% ज्यादा क्रिमिनल सांसद बनकर आये है। क्रिमिनल लाइजेशन ऑफ़ पॉलिटिक्स का इलाज MP -MLA कोर्ट नहीं है। इसका ईलाज या तो हम कर सकते है या राजनितिक दल। राजनितिक दल क्रिमिनल को टिकिट ना दे हम क्रिमिनल के खड़े होने पर नोटा का इस्तेमाल करे तो ही इस पर काबू पाया जा सकता है। एक और काम जो इलेक्शन कमीशन ,सरकार या सुप्रीम कोर्ट कर सकते है वो है की अगर किसी सीट पर कोई Dicline क्रिमिनल खड़ा होता है तो उसे जीत के लिए कम से कम 50% से अधिक वोट मिलने चाहिए। या अगर 50% जनता नोटा का इस्तमाल करती है तो इलेक्शन काउंटर मांड होना चाहिए। इस विषयो पर सोचिये।

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